जयपुर । थके-हारे मजदूर छोटे-छोटे बच्चों के साथ सैंकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर चुके थे और कोई पांच सौ-हजार किलोमीटर की मुश्किल राह तय करना उनके लिए अभी बाकी थी। घर पहुंचने की इच्छा वाले ऎसे लोगों के लिए राजस्थान सरकार की ‘श्रमिक स्पेशल बस सेवा’ सुकून लेकर आई है।
मध्यप्रदेश के भिंड के रमेश बाथम और छविराम, छतरपुर के अखिलेश, मुरैना के बलू, जबलपुर के सहदेव जैसे लोगों ने अपने घर पहुंचने के लिए सैकड़ों-हजारोंं किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करने की ठानी और सामान उठाकर चल पड़े। भिंड के रमेश बाथम बताते हैं कि वह परिवार के साथ किशनगढ़ (अजमेर) में गोलगप्पे का ठेला लगाकर परिवार को पाल रहे थे।
इसी बीच लॉक डाउन होने से उनका काम बंद हो गया। दो महीने बिना काम गुजारने के बाद पत्नी और बच्चों के साथ पैदल ही घर के लिए रवाना हो गए। रास्ते में कहीं पैदल तो कहीं किसी साधन से वह जैसे-तैसे सौ किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय कर जयपुर पहुंच गए। यहां चेक पोस्ट पर पुलिस ने रोक लिया और कानोता में लगे विशेष शिविर में भेज दिया। यहां पर उनके लिए खाने-पीने की पूरी व्यवस्था रही। राजस्थान रोडवेज की बस में बैठे रमेश के चेहरे पर घर जाने की खुशी साफ झलक रही थी। उनके साथ बैठी उनकी पत्नी और छविराम बोलें, राज्य सरकार ने फ्री में बस की व्यवस्था कर हमें निहाल कर दिया। अब हम जल्दी ही घर पहुंच जाएंगे। वहां जाकर मनरेगा में काम करेंगे और बरसात होने पर कुछ खेती कर लेंगे।
जबलपुर के सहदेव चार अन्य साथियों के साथ चूरू में भूमिगत लाइन डालने का काम करते थे। काम ठप होने पर दो माह के इंतजार के बाद तीन दिन पहले चूरू से पैदल ही जबलपुर के लिए निकल लिए। वह बताते हैं कि लॉक डाउन के दौरान उन्हें खाने-पीने की कोई समस्या नहीं हुई, रास्ते में भी लोगों ने भरपूर मदद की। कहीं किसी गाड़ी वाले ने लिफ्ट देकर कुछ राह आसान कर दी, तो भले लोगों ने जगह-जगह खाने-पीने की भी पूरी मनुहार की। जब हम जयपुर में हाइवे से गुजर रहे थे तो पुलिस ने रोककर हमारा हाल पूछा और कैम्प में पहुंचा दिया। अब हम पांचों साथी जल्द ही हमारे घर पहूंच जाएंगे।
जयपुर में मकानों के पेंट करने वाले तेजसिंह यहां पत्नी और बच्चे के साथ रह रहे थे। पिछले दो माह से काम बंद होने से परेशान हो रहे थे। इसी तरह जयपुर में रहकर ढाबे पर रोटी बनाने वाला बलू, कानोता में ईंट भट्टे पर काम करने वाली रामकली और अखिलेश भी पिछले दो महीने से बिना काम यहां बैठे थे और घर जाने की राह तक रहे थे। इसी बीच इन्हें राजस्थान सरकार की बस सेवा की जानकारी मिली तो यहां कानोता शिविर में पहुंच गए।
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