
जयपुर । यह शायद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कार्यशैली है या राजनीतिक रणनीति वह राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर डेढ़ या दो साल का वक्त लगा ही देते है। इस बार डिप्टी सीएम सचिन पायलट की दखल के कारण सीएम अशोक गहलोत दिल्ली दरबार में अपनी मनमानी नहीं कर पा रहे है, इसके चलते राजनीति नियुक्तियों को लेकर देरी हो रही है। प्रदेश के 20 से अधिक महत्वपूर्ण पदों पर राजनीतिक नियुक्तियां होनी है, हालांकि निकाय स्तर की नियुक्तियों का कार्य चल रहा है, लेकिन मलाईदार पदों की नियुक्तियों को लेकर दिल्ली दरबार में लिस्ट जाती है और नाम कटते और फिर नई लिस्ट जाती है। यही हाल मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल को लेकर चल रहा है। पिछले डेढ़ वर्ष से अधिक कार्यकाल में उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी, तकनीकी शिक्षा मंत्री डॉ. सुभाष गर्ग के बीच अनबन की बात सामने आई है। इसी तरह सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना की अपने अफसरों से नहीं बन रही है। यही हाल पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह का है, ट्विटर पर ज्यादा सक्रिय रहने वाले और वहीं से अपनी बात जनता के सामने रखने वाले मंत्री महोदय भी अफसरों से परेशान है। यही हाल शिक्षा राज्यमंत्री गोविंद सिंह डोटासरा का है। यह भी आईएएस अधिकारियो से परेशान रहते है। सिर्फ उद्योग मंत्री परसादी लाल मीणा ही ऐसे मंत्री जिनके टकराव की कोई बात सामने नहीं आई। नहीं तो खान मंत्री प्रमोद जैन भाया, खेल मंत्री अशोक चांदना, खाद्य मंत्री रमेश मीणा की अपने अधिकारियों के साथ टकराव की खबरें आए दिन, मीडियों में खबरें बनाती है। या तो खुद मंत्री महोदय अपना दर्द मीडिया के सामने बयां कर देते है, नहीं तो रही-सही कसर आईएएस अफसर पूरा कर देते है। चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा, परिवहन मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास की जोड़ी पाला बदलकर गहलोत खेमे मे जाकर खुद को बचाने में लगी हुई है। तमाम भ्रष्टाचार की शिकायतों के बावजूद अभी तक प्रदेश के किसी भी मंत्री का बाल तक बांका नहीं हुआ है। सिर्फ आईएएस या आरएएस अफसरों को इधर से उधर करके मंत्री अपनी नाक बचा रहे है। यूडीएच मंत्री शांतिधारीवाल, राजस्व मंत्री हरीश चौधरी, कृषि मंत्री लालचंद कटारिया भी अपनी मनमानी नहीं होने के कारण अफसरों से परेशान रहते है।
इससे इतर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार है। बड़े मलाईदार पद, बोर्ड, निगम, आयोगों के चेयरमैन बनने के लिए कांग्रेसी कार्यकर्ता बेताब है, लेकिन गहलोत-पायलट की खेमेबाजी के चलते इंतजार करना पड़ रहा है। हालांकि गहलोत और पायलट खुले मंच पर एक साथ बैठकर यह संदेश देने की कोशिश करते है खेमेबाजी जैसी कोई बात नहीं है ना ही कोई मनमुटाव है। लेकिन राजनीतिक नियुक्तियों में देरी यह बताने के लिए काफी है कि खींचतान चल रही है। पायलट का ज्यादातर पीसीसी बैठना और सचिवालय में अपने कक्ष में लगातार नहीं बैठना, यह बताने के लिए काफी है कि सीएमओ में बैठने की इच्छा मर जाने के कारण वह यहां कम ही आते है।
इससे इतर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार है। बड़े मलाईदार पद, बोर्ड, निगम, आयोगों के चेयरमैन बनने के लिए कांग्रेसी कार्यकर्ता बेताब है, लेकिन गहलोत-पायलट की खेमेबाजी के चलते इंतजार करना पड़ रहा है। हालांकि गहलोत और पायलट खुले मंच पर एक साथ बैठकर यह संदेश देने की कोशिश करते है खेमेबाजी जैसी कोई बात नहीं है ना ही कोई मनमुटाव है। लेकिन राजनीतिक नियुक्तियों में देरी यह बताने के लिए काफी है कि खींचतान चल रही है। पायलट का ज्यादातर पीसीसी बैठना और सचिवालय में अपने कक्ष में लगातार नहीं बैठना, यह बताने के लिए काफी है कि सीएमओ में बैठने की इच्छा मर जाने के कारण वह यहां कम ही आते है।
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