
जयपुर । राजस्थान में गहलोत सरकार की बाड़ेबंदी के चलते शासन सचिवालय में फाइलों की गति थम सी गई है। सिर्फ जरूरी और वह फाइलें निपटाई जा रही है, जिसके बारे में पहले से मंत्रीस्तर पर या कैबिनेट स्तर पर फैसला हो चुका है। लेकिन नये प्रपोजल, नई फाइलें बाबू से लेकर ऊपर तक यानी आईएएस स्तर का अफसर नहीं देख रहा है। सभी की निगाहे सुबह से देर रात तक टीवी चैनलों, वाट्सअप ग्रुपों और सुबह अखबार की खबरों पर रहती है। मंत्रियों के विशिष्ठ सचिव और मंत्रियों के स्टॉफ दिन-रात यह गणित लगाते रहते है कि उनके मंत्री की कुर्सी बचेगी या नहीं या । वहीं शासन सचिवालय की ब्यूरोक्रेसी में यह चर्चा रहती है कि गहलोत सरकार बचेगी या नहीं। जिन अफसरों को गहलोत सरकार ने कम महत्ववाली पोस्टों पर लगा रखा है, वह बड़े चटखारे लेकर दिनभर काना-फूसी में लगे रहते है।
शासन सचिवालय के स्वागत कक्ष पर भी आए दिन जो भीड़ लगी रहती थी, वह भी अब कम हो गई है। गहलोत सरकार के सभी मंत्री और कांग्रेसी विधायक बाड़ेबंदी में एक होटल में है और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अभी विधायकों को होटल में रूकने के संकेत दिए है। जिससे कि कांग्रेस सरकार को कोई खतरा नहीं हो। लेकिन मंत्रियों के बाड़ेबंदी में कैद होने से कोई सुनवाई नहीं हो रही है और आईएएस या आरएएस अफसर अपने स्तर पर कोई भी फैसला नहीं ले रही है। चाहे वह नियमों में हो, या उनके अधिकार क्षेत्र में हो। सिर्फ मुख्यमंत्री कार्यालय के आने वाले दिशा-निर्दशों , या मंत्री के व्यक्तिगत स्तर से आने वाले दिशा-निर्देशों की सुनवाई हो रही है। इसके अलावा कोरोनाकाल में ब्यूरोक्रेसी से तो आम जनता का मिलना मुश्किल हो गया है। सिर्फ गिने-चुने अफसर ही फरियाद सुन रहे है।
शासन सचिवालय के स्वागत कक्ष पर भी आए दिन जो भीड़ लगी रहती थी, वह भी अब कम हो गई है। गहलोत सरकार के सभी मंत्री और कांग्रेसी विधायक बाड़ेबंदी में एक होटल में है और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अभी विधायकों को होटल में रूकने के संकेत दिए है। जिससे कि कांग्रेस सरकार को कोई खतरा नहीं हो। लेकिन मंत्रियों के बाड़ेबंदी में कैद होने से कोई सुनवाई नहीं हो रही है और आईएएस या आरएएस अफसर अपने स्तर पर कोई भी फैसला नहीं ले रही है। चाहे वह नियमों में हो, या उनके अधिकार क्षेत्र में हो। सिर्फ मुख्यमंत्री कार्यालय के आने वाले दिशा-निर्दशों , या मंत्री के व्यक्तिगत स्तर से आने वाले दिशा-निर्देशों की सुनवाई हो रही है। इसके अलावा कोरोनाकाल में ब्यूरोक्रेसी से तो आम जनता का मिलना मुश्किल हो गया है। सिर्फ गिने-चुने अफसर ही फरियाद सुन रहे है।
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